अध्याय-1 आचार और व्यवहार
अध्याय-1 आचार और व्यवहार
आचार और व्यवहार : व्यक्तित्व की असली पहचान
मनुष्य के जीवन में आचार (Conduct) और व्यवहार (Behavior) वही स्थान रखते हैं जो शरीर में आत्मा का होता है। यह दोनों ही किसी व्यक्ति की पहचान, उसके संस्कार और उसके सामाजिक मूल्य का आधार होते हैं। धन, पद या शोहरत कितनी भी बड़ी क्यों न हो, यदि आचार और व्यवहार शुद्ध न हों तो वह व्यक्ति समाज में सम्मान का पात्र नहीं बन सकता। इसी कारण भारतीय संस्कृति में आचार-विचार और सद्व्यवहार को चरित्र की नींव माना गया है।
1. आचार का अर्थ और महत्व
आचार का अर्थ है – जीवन जीने की वह नैतिक और आचरण संबंधी रीति, जो शुद्ध, संयमित और मर्यादित हो। यह वह नियम है जिसके आधार पर व्यक्ति स्वयं को नियंत्रित करता है।
आचार हमें सिखाता है कि क्या करना उचित है और क्या अनुचित।
यह भीतर की पवित्रता और आत्मानुशासन का प्रतीक है।
जैसे – सत्य बोलना, वचन का पालन करना, समय पर कार्य करना, स्वच्छता रखना और किसी का अनादर न करना अच्छे आचार कहलाते हैं।
अगर आचार गलत हो तो व्यक्ति की प्रतिभा, ज्ञान और शक्ति भी व्यर्थ हो जाती है। इतिहास साक्षी है कि जिन व्यक्तियों ने आचार की मर्यादा तोड़ी, वे समाज में टिक न सके।
2. व्यवहार का अर्थ और महत्व
व्यवहार का अर्थ है – दूसरों से बोलचाल और कार्यों में प्रदर्शित स्वभाव। यह वह दर्पण है जिससे लोग हमें पहचानते हैं।
व्यवहार में शिष्ट भाषा, मधुर वाणी, सहानुभूति, सहयोग और सरलता शामिल हैं।
व्यवहार ही वह माध्यम है जिससे मनुष्य समाज में संबंध बनाता है।
यदि आचार आत्मानुशासन है तो व्यवहार समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारी।
कहा भी गया है – “वाणी से व्यक्ति के संस्कार झलकते हैं।” यदि वाणी कटु हो तो बड़े से बड़ा ज्ञान भी फीका पड़ जाता है, परंतु यदि वाणी मधुर और व्यवहार शालीन हो तो साधारण व्यक्ति भी महान बन जाता है।
3. आचार और व्यवहार का आपसी संबंध
आचार और व्यवहार एक-दूसरे के पूरक हैं।
आचार हमारे भीतर का संस्कार है और व्यवहार उसका बाहरी रूप।
यदि भीतर का आचार शुद्ध है तो बाहर का व्यवहार स्वतः ही उत्तम होगा।
केवल बाहरी दिखावा करके सज्जन बनने का प्रयास लंबे समय तक नहीं चल सकता।
उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति भीतर से ईर्ष्या और क्रोध से भरा है तो उसका व्यवहार चाहे कितनी भी सज्जनता का आवरण ओढ़ ले, समय आने पर उसकी असलियत प्रकट हो ही जाती है।
4. आचार और व्यवहार का सामाजिक महत्व
समाज में सुख-शांति और समरसता बनाए रखने में आचार और व्यवहार की अहम भूमिका है।
एक परिवार में यदि सभी सदस्य मर्यादित आचार और मधुर व्यवहार रखते हैं तो वहाँ कभी विवाद नहीं होता।
विद्यालय में गुरु और शिष्य का रिश्ता आचार और व्यवहार पर ही टिकता है।
व्यवसाय में ग्राहक और व्यापारी का विश्वास भी अच्छे आचार-व्यवहार से ही बढ़ता है।
यही कारण है कि हर समाज अच्छे आचरण वाले व्यक्ति को सम्मान देता है और असभ्य व्यवहार वाले व्यक्ति को अस्वीकार कर देता है।
5. आधुनिक जीवन में आचार और व्यवहार की आवश्यकता
आज की भागदौड़ और प्रतिस्पर्धा से भरी दुनिया में लोग अकसर धन और पद प्राप्त करने की होड़ में आचार और व्यवहार को भूल जाते हैं।
झूठ, धोखा, लालच और कटु वाणी धीरे-धीरे रिश्तों में दूरी और समाज में असंतुलन पैदा करते हैं।
ऐसे समय में आचार और व्यवहार को अपनाना और भी आवश्यक हो जाता है।
यदि हम अपने जीवन में आचार और व्यवहार की नींव मजबूत रखें तो आधुनिक जीवन की चुनौतियाँ भी सरल हो जाती हैं।
6. आचार और व्यवहार को सुधारने के उपाय
1. सत्य और ईमानदारी – हमेशा सच बोलने और ईमानदार रहने की आदत डालें।
2. संयम और धैर्य – गुस्से में कठोर शब्दों से बचें और धैर्यपूर्वक बात करें।
3. मधुर वाणी – बातचीत में शालीनता और नम्रता रखें।
4. सहानुभूति और सहयोग – दूसरों की मदद करने में तत्पर रहें।
5. स्वच्छता और अनुशासन – व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में स्वच्छता और अनुशासन अपनाएँ।
6. आत्मचिंतन – प्रतिदिन अपने आचार और व्यवहार की समीक्षा करें और कमियों को सुधारें।
7. निष्कर्ष
आचार और व्यवहार ही मनुष्य का वास्तविक सौंदर्य है। रूप-रंग, धन-दौलत या पद प्रतिष्ठा क्षणिक हैं, परंतु उत्तम आचार और शालीन व्यवहार व्यक्ति को सदा अमर बनाते हैं। जिस तरह फूल अपनी सुगंध से पहचाना जाता है, उसी प्रकार मनुष्य अपने आचार और व्यवहार से पहचाना जाता है।
अतः हमें चाहिए कि अपने जीवन में आचार और व्यवहार को सर्वोच्च स्थान दें, क्योंकि यही हमारी असली पहचान, समाज में सम्मान और जीवन में सफलता की कुंजी है।
क्रमशः-
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