श्री गौ पुराण
श्री गौ पुराण
📘 अध्याय 1
🕉️ गौ माता की उत्पत्ति और वेदों में उल्लेख
1.1 – गौ माता की दिव्य उत्पत्ति
गौ माता की उत्पत्ति का वर्णन पुराणों और वेदों में विस्तार से मिलता है। विशेष रूप से सुरभि नामक कामधेनु गाय समुद्र मंथन से उत्पन्न हुई थीं। वे सभी देवी-देवताओं की माता तुल्य थीं।
> श्लोक:
"सुरभिर्जगतो माता देवमाताभवत्स्मृता।
यया तुष्टाः सुराः सर्वे समुद्र मथनाद्गता॥"
> हिंदी अर्थ:
सुरभि जगत की माता बनीं और देवताओं की भी माता मानी गईं।
समुद्र मंथन से उत्पन्न होकर उन्होंने समस्त देवताओं को संतुष्ट किया।
> व्याख्या:
गाय का जन्म कोई सामान्य घटना नहीं है। यह साक्षात ब्रह्मांडीय संतुलन की रचना है। गाय को "सुरभि" इसलिए कहा गया क्योंकि वह इच्छाओं को पूर्ण करने वाली है।
1.2 – वेदों में गौ माता का गौरव
गायों का उल्लेख ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद में पवित्र, कल्याणकारक और मातृस्वरूप के रूप में मिलता है।
> श्लोक (ऋग्वेद 1.164.27):
"गावो विश्वस्य मातरः"
> हिंदी अर्थ:
गायें सम्पूर्ण संसार की माताएं हैं।
> व्याख्या:
जैसे माता पालन करती है, वैसे ही गाय समस्त प्राणियों का पालन-पोषण करती है — दूध, गोबर, गोमूत्र से। उसका हर अंग उपयोगी है।
1.3 – गौ माता में देवताओं का वास
> श्लोक:
"गवां मध्ये स्थितं तीर्थं सर्वपापप्रणाशनम्।
गवां स्पर्शेन पापानि नश्यन्ति सततं नृणाम्॥"
> हिंदी अर्थ:
गायों के मध्य में जो तीर्थ है, वह समस्त पापों को नष्ट करने वाला है।
मनुष्य के पाप मात्र गाय के स्पर्श से ही समाप्त हो जाते हैं।
> व्याख्या:
गाय चलती तीर्थ है। उसका गोचरण क्षेत्र पवित्र भूमि है। जिस स्थान पर गाय रहती है, वहाँ धर्म, सत्य और पुण्य वास करते हैं।
1.4 – ब्रह्मा, विष्णु और महेश द्वारा गौ स्तुति
> श्लोक:
"गावः पूज्या महादेव्यः, त्रैलोक्यस्य हिताय च।
ब्रह्मविष्णुहरैः पूज्या, त्रैगुण्यमयी शुभा॥"
>हिंदी अर्थ:
गौ माता पूज्य हैं, वे तीनों लोकों के हित के लिए उत्पन्न हुई हैं।
ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने स्वयं उनकी पूजा की है।
> व्याख्या:
त्रिदेवों द्वारा पूजित होने के कारण गाय को कोई साधारण प्राणी नहीं माना जा सकता। वह साक्षात त्रिगुणात्मिका शक्ति है।
1.5 – गौ माता का स्वरूप और विशेषताएँ
> श्लोक:
"गवां देहे स्थिता देवीं लक्ष्मीं विष्णुपरायणीम्।
दृष्ट्वा तां पुण्यमाप्नोति सप्तजन्मसु दुर्लभम्॥"
> हिंदी अर्थ:
गौ के शरीर में लक्ष्मी देवी का निवास है, जो विष्णु की प्रिय हैं।
केवल उसे देखने से ही मनुष्य सात जन्मों में दुर्लभ पुण्य प्राप्त करता है।
> व्याख्या:
गौ-दर्शन भी साधना है। उसका दर्शन, पूजन और सेवा आत्मा को पवित्र करती है और मोक्ष की ओर ले जाती है।
अध्याय सारांश:
गाय कोई पशु मात्र नहीं, वह साक्षात देवी हैं।
वेदों में उन्हें मातृस्वरूपा, तीर्थरूपा, देवतामयी कहा गया है।
उनकी उत्पत्ति सुरभि रूप में समुद्र मंथन से हुई।
उनके दर्शन, स्पर्श और सेवा से महान पुण्य प्राप्त होता है।
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अध्याय 1 का उद्देश्य:
सनातन धर्म में गौ माता के दैवी स्वरूप, वेदों में स्थान, और त्रिदेवों द्वारा पूजन के प्रमाण द्वारा यह स्थापित करना कि गौ सेवा और गौ संरक्षण केवल सामाजिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक कर्तव्य भी है।
श्री धेनु
क्रमशः
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