संतान सुख


संसार में कोई भी ऐसा दंपति नहीं होगा, जो संतान सुख नहीं चाहता हो।

➡️चाहे वह गरीब हो या अमीर। सभी के लिए संतान सुख होना सुखदायी ही रहता है। 

➡️किसी-किसी की संतान होती है और फिर गुजर जाती है। ऐसा क्यों होता है? ये सब ग्रहों की वजह से होता है।

➡️ पंचम स्थान पर पड़ा राहु गर्भपात कराता है। यदि पंचम भाव में गुरु के साथ राहु हो तो चांडाल योग बनता है और संतान में बाधा डालता है यदि यह योग स्त्री की कुंडली में हो तो। यदि यह योग पुरुष कुंडली में हो तो संतान नहीं होती।

 ➡️नीच का राहु भी संतान नहीं देता। राहु, मंगल, पंचम भाव मे हो तो एक संतान होती है। पंचम स्थान में  चँद्र, शनि, राहु भी संतानसुख मे बाधक होता है। 

➡️पंचम स्थान पर राहु या केतु हो तो पितृदोष, दैविक दोष, जन्म दोष होने से भी संतान नहीं होती। 

➡️यदि पंचम भाव पर पितृदोष या पुत्रदोष बनता हो तो उस दोष की शांति करवाने के बाद संतान प्राप्ति संभव है।

➡️संतान प्राप्ति को पूर्व जन्मों के कर्मों का सुफल माना है। नि:संतान होना किसी दंपति के लिए अपार मानसिक पीड़ा का कारण बन जाता है। होता यह है कि कई बार बात बनते-बनते बिगड़ जाती है। 

➡️ऐसे में जरूरत होती है किसी सहारे की। ईश्वर अनुग्रह, गुरु कृपा, तंत्र-मंत्र-यंत्र के प्रयोग, कोई अनुष्ठान या व्रत-उपवास, ये सहारे हैंl


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Astro-db

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