कुंडली का अष्टम भाव


अष्टम भाव पर विचार :-
हेलो दोस्तों मै ज्योतिषाचार्य नवरत्न वत्स आज कुंडली के अष्टम भाव किस कारकत्व के लिए प्रसिद्ध है इसके बारे में जानकारी देना चाहता हूं।
क्योंकि साधारणतः ज्योतिष शास्त्र में अष्टम भाव को मारक भाव मृत्यु का भाव दुर्घटना का भाव से जाना जाता है I
पर अष्टम भाव से अर्जित धन जमीन के अंदर जाना और किसी चीज के बारे में  खोजना पुरात्तव विभाग तथा अपमान और आयु का भी विचार करते हैं लेकिन इसके साथ यह भी देखना पड़ता है अष्टम भाव में स्थित ग्रह उसका अधिपति तथा नवांश कुंडली के आठवीं भाव से जो योग बन रहा है वह क्या है उसकी स्थिति पर विचार करना पडता है I
अष्टमेश चाहे जो भी राशि हो पाप ग्रह हो या सौम्य ग्रह हो इसके प्रभाव क्या है यह भी जानने का प्रयास करेंगे I
1सूर्य:-
यदि किसी जातक की कुंडली के अष्टम भाव में उच्च का सूर्य हो अत: मेष राशि में हो तो जातक की आयु लंबी होती है जातक आकर्षक कुशल तथा गंभीर स्वभाव का होता है लेकिन यदि सूर्य अष्टम भाव में कामजोर हो तो वह जातक अपने चेहरे तथा सिर में घाव से कष्ट पाता है आंखे कमजोर होता है जीवन अशांत रहता है तथा धन के कमी से पीड़ित होता है।
हलाकि सूर्य को अष्टमेश होने का दोष नहीं लगता है फिर भी यदि कर्क लग्न की कुंडली हो और द्वितीयेश सूर्य अष्टम भाव में आ जाए तो अनेको बिमारी का कष्ट झेलना पड़ता है क्यों कि कुंडली के अष्टम भाव में सूर्य मारक कहा जाता है I 
यदि  मारक ग्रह अष्टम भाव  स्थित हो जाए तो मृत्यु तुल्य कष्ट पाता है। अगर आपकी कुंडली में सूर्य अशुभ हो तो सूर्य के वास्तु गेहुं गुड़ लाल फल सेव का दान करें। तथा गायत्री मंत्र का जाप करें।
2 चन्द्रमा :-
यदि किसी जातक की कुंडली में अष्टम भाव  मे चन्द्रमा स्थित होने पर जातक मानसिक रूप से परेशान होता है अष्टम भाव मे स्थित चन्द्रमा जातक हमेशा भयभीत रहता है मनो दशा पीड़ित रहता है जातक के जीवन में निराशा चारो ओरे दिखता है जातक उदार दिल वाला होता है फिर भी जातक को अपने अंदर घवराहट  के कारण माथे पर पसीना आता है, हाथ में पसीना से गीला होने लगता है और अधिक भीड़ वाले स्थान से दूर-दूर रहना चाहता है। शनि युक्त चंद्र अष्टम भाव में हो यो जातक के बायें आंख अधिक से अधिक प्रभावित रहता है अगर आपके जीवन में कुछ ऐसा है तो आप जल में थोड़ा दूध मिलाकर सोमवार को भगवान शिव का अभिषेक करें ऐसा करने से धीरे-धीरे चंद्रमा ठीक होने लगेगा।
मंगल  ग्रह  :-
यदि किसी जातक की कुंडली में मंगल अष्टम भाव हो तो लग्न स्थिर राशि हो, चार राशि नहीं हो तथा बृहस्पति द्वितीयेश हो तो जातक दास का जीवन व्यतीत करने के लिए वैध होता है। जिस जातक की कुंडली में मंगल अष्टम भाव हो और मंगल का उपाय नहीं किया जाए तो जातक की आयु काम होगी तथा पति या पत्नी में से एक की मृत्यु भी हो सकती है।
घरेलु जीवन में हमेशा काल्ह का वातावरण रहता है घर में शांति बनाए रखने के लिए तथा दम्पति जीवन सहज और सरल रखने के लिए हनुमान चालीसा का पाठ तथा बजरंग वाण का पाठ करवाए सूर्यको अर्घ्य दे तथा लाल वास्तु का दान करें लाल फल गुड़ तथा मसूर के दाल का दान करें।

बुध गृह :-
यदि किसी जातक की कुंडली के अष्टम भाव में वृश्चिक राशि के बुध हो तो अशुभ फल देगा या कुंडली के अष्टम भाव में नीच का हो तो आपको हरा वस्त्र धारण नहीं करना है हरे फल या हरे चारे का दान, अनाज में हरे मूंग का भी दान कर सकते हैं।
गुरु बृहस्पति :-
यदि किसी जातक की कुंडली में अष्टम भाव में गुरु बृहस्पति को तो जातक काफी दिनों तक जीवित रहेगा यदि बृहस्पति नीच का हो और चंद्रमा से चतुर्थ भाव में हो तो जातक हमेशा दूसरे का आज्ञा का पालन करेगा। अष्टम भाव में स्थित गुरु अपने बंधु जन का वियोग करता है स्थान हानि तथा विदेश गमन करता है .अष्टम भाव का गुरु संन्यासी बनने में भी .अगर आपकी कुंडली में ऐसी स्थिति है तो आप बृहस्पति के वस्तु का दान करें पीला फल पीला अनाज पांच गांठ हल्दी पीला वस्त्र का दान करें।
शुक्र ग्रह :-
यदि किसी जातक की कुंडली में शुक्र अष्टम भाव में स्थिति हो तो यह स्थिति अनेक लाभ देता है। जातक अपने जीवन में कफी धन कमाएगा उसके पास जीवन की सारी सुबिधा प्राप्ति होगी यदि किसी जातक की कुंडली के अष्टम भाव में शुक्र उच्च का हो अत: मीन राशि ने हो तो जातक समाज में बहुत इज्जत शोहरत पाता है। शनि ग्रह.:-
यदि किसी जातक की कुंडली अष्टम भाव में शनि हो तो जातक की आयु तो अच्छी होती है पर जातक अपने शरीर से रोगी होता है जातक अनेक परेशानियाँ के साथ दूसरे के माध्यम से अपना कार्य करता है।
यदि किसी जातक की कुंडली के अष्टम भाव में चंद्र और शनि की युति हो तो विष दोष बनता है तो अनेक परेशानियाँ होती है जातक की माँ का देहांत कम उमर में ही किसी रोग के कारण हो जाता है जातक का शरीर में पेट आगे की ओर बढ़ा हुआ रहता है I
अष्टम भाव उत्पीडन और दुर्घटना का कारक बनता है
अष्टम भाव में शुभ ग्रह की दृष्टि हो और अष्टम भाव पर शनि की दृष्टि हो तो इसे ऐसा रोग देता है जैसे भोजन का अंतर्ग्रहण रुक जाता है।


श्री वैदिक ज्योतिष अनुसन्धान 
Astro-db

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