भक्ति का सौदा
**भक्ति और आस्था: सत्कर्म का मार्ग, अंधविश्वास नहीं** आज के युग में जब समाज तीव्र गति से भौतिक प्रगति कर रहा है, तब भी आस्था और भक्ति का प्रभाव मानवीय जीवन में गहराई से विद्यमान है। मंदिरों में भीड़, तीर्थों की यात्राएँ, हवन-पंढालों के आयोजन और धार्मिक गुरुओं की कथाओं में लाखों का जमावड़ा—यह सब हमारे भीतर के विश्वास के प्रतीक हैं। लेकिन इसी आस्था का एक दूसरा चेहरा भी है, जो हमें सोचने पर मजबूर कर देता है—क्या भक्ति केवल धन और ऐश्वर्य प्राप्त करने का माध्यम बन गई है? क्या लोगों की यह धारणा कि “भक्ति से करोड़पति बना जा सकता है” किसी अन्धविश्वास की मानसिकता नहीं है? #### **भक्ति: एक आत्मिक अनुशासन** भक्ति का वास्तविक स्वरूप आत्मिक अनुशासन में निहित है। यह मनुष्य को लोभ, क्रोध, ईर्ष्या जैसे नकारात्मक गुणों से दूर ले जाकर उसे आत्मशुद्धि की ओर प्रेरित करती है। संत तुलसीदास ने कहा था—“भक्ति करै सु सुख उपजै, मिटै पाप दुख भारी”—अर्थात् भक्ति का उद्देश्य मन के विकारों को दूर कर जीवन में शांति लाना है, न कि धन-संपत्ति की कामना करना। भक्ति का अर्थ भगवान से लेन-देन नहीं, बल्कि...