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भावेश ग्रह

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ज्योतिष शास्त्र में जन्म कुंडली के प्रत्येक भाव का अपना एक महत्व होता है, और उस भाव को संचालित करने वाला एक स्वामी ग्रह भी होता है। इस ग्रह को ही भावेश कहा जाता है। भावेश का निर्धारण बहुत सरल, तर्कपूर्ण और मूलभूत सिद्धांत पर आधारित है: जिस भाव में जो राशि स्थित होती है, उसी राशि का स्वामी ग्रह उस भाव का भावेश बन जाता है। इस नियम को समझना किसी भी कुंडली का गहराई से विश्लेषण करने की पहली और सबसे महत्त्वपूर्ण सीढ़ी है। कुंडली में कुल १२ भाव होते हैं और उसी प्रकार आकाश में १२ राशियाँ—मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ और मीन—मौजूद रहती हैं। हर राशि का अपना एक स्वामी ग्रह होता है, जैसे—मेष का मंगल, वृषभ का शुक्र, मिथुन का बुध, कर्क का चंद्रमा, सिंह का सूर्य आदि। जब जन्म के समय किसी व्यक्ति की कुंडली के किसी विशेष भाव में एक विशेष राशि बैठी होती है, तो उस राशि का स्वामी ही उस भाव के फल, प्रभाव, गुण और परिणामों को नियंत्रित करता है। इसी कारण उसे उस भाव का भावेश कहा जाता है। उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि किसी व्यक्ति के जन्म के समय उसकी कुंडली के प्रथ...

तन्हाई-4,5,6

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एपिसोड 4  तन्हाई शरीर और आत्मा का एक होना शाम ढल चुकी थी बाहर आसमान में काले बादलों की परतें किसी अनकहे तूफ़ान की आहट दे रही थीं बंगले में रखी गयी मीटिंग लंबी खिंच गई थी बिजली बार-बार जा रही थी, और बाहर मूसलाधार बारिश ने सड़कों को जैसे समुंदर में बदल दिया था. संध्या ने खिड़की से बाहर झाँका कारों की कतारें थमी हुई थीं, पानी छत से धार की तरह गिर रहा था। तभी उसने पीछे मुड़कर देखा अमर फ़ाइलें समेट रहा था, उसका चेहरा थकान से भीगा हुआ था। "अमर, इस मौसम में निकलना ठीक नहीं होगा,”संध्या ने धीमी, मगर दृढ़ आवाज़ में कहा। अमर हल्का-सा मुस्कुराया फिर संध्या ने कहा, "मैं ज़िद नहीं करती कभी, लेकिन आज कह रही हूँ- रुक जाओ, बाहर सड़कें बंद हैं, अगर मन करे, तो ऊपर गेस्ट रूम आज रात यही रूक जाओ।” अमर ने एक पल को उनकी आँखों में देखा, ये आदेश नहीं था, चिंता थी, ममता थी... और कुछ और भी था, जो शब्दों से परे था। --- रात धीरे-धीरे उतर रही थी बंगले में बस हल्की रौशनी थी, बाहर हवा में बारिश की बूंदें झनकार की तरह टकरा रही थीं, संध्या ने दो कप कॉफ़ी बनाई जब अमर हॉल में आया तो उसके बाल अब भी...

तन्हाई-3

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एपिसोड 3  तन्हाई भावनाओं की सीमाएँ और समाज का भय संध्या के ऑफिस में अब हर दिन कुछ अलग महसूस होता था, अमर की उपस्थिति एक तरह की ऊर्जा लेकर आती थी जैसे किसी पुराने कमरे की बंद खिड़की अचानक खुल जाए और हवा अंदर आ जाए, अब दोनों के बीच कोई औपचारिक झिझक नहीं रही थी, पर एक अनकही दूरी अब भी थी वह दूरी जो समाज, उम्र और मर्यादा की दीवारों से बनी थी। ऑफिस के गलियारों में, फाइलों के बीच, बैठकों के दौरान अमर और संध्या की नज़रें अब अक्सर टकरातीं, हर बार संध्या आँखें चुराने की कोशिश करती, पर देर-सबेर मुस्कुरा देती, वही अमर की मुस्कान सीधी, ईमानदार और अनजानी थी, उसमें कोई दिखावा नहीं था, बस एक सच्चा अपनापन था. एक दिन कॉफी मशीन के पास दोनों अचानक आमने-सामने हो गए। अमर ने कहा, "मैम, आपको ब्लैक कॉफी पसंद है, सही?” संध्या ने चौंककर देखा, "इतना कैसे जान लिया?” "क्योंकि आप हर बार मीटिंग में कॉफी का कप पूरा छोड़ देती हैं… दूध से आपको परेशानी होती होगी।” संध्या के चेहरे पर हल्की हँसी आई, "तुम बहुत ध्यान रखते हो।” अमर सहजता से बोला, "ध्यान नहीं मैम, आदत है… जो लोग चुपचाप सब ...

तन्हाई-2

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एपिसोड 2 तन्हाई उम्र का अंतर भूलकर मन का कंपन  सुबह की ठंडी हवा ऑफिस की इमारत के लॉन में हल्के-हल्के बह रही थी। सरकारी दफ्तर की दीवारें हर रोज़ की तरह फाइलों की गंध से भरी थीं- लेकिन आज उस गंध में कुछ नया घुला था। शायद किसी नई शुरुआत की आहट… वही आज दफ्तर में सबके बीच चर्चा थी- "नए अधिकारी का ट्रांसफर यहीं हुआ है, हमने सुना हैं बड़ा ही तेज़ लड़का है।" संध्या ने अपनी मेज़ पर रखी फाइलों के ढेर के बीच से नज़र उठाई। दरवाज़े पर खड़ा था एक नौजवान- लंबा-चौड़ा, आत्मविश्वास से भरा चेहरा, आँखों में ईमानदारी और मुस्कुराहट में अपनापन। "मैम, मैं अमर चौहान- सेक्शन ऑफिसर," उसने आदर से झुककर कहा। संध्या ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया, "वेलकम मिस्टर चौहान, बैठिए। उम्मीद है उत्तराखंड से यहाँ का मौसम ज़्यादा नहीं खलेगा।" "जी मैम, यहाँ तो लोग ज़्यादा गर्मजोशी से मिल रहे हैं," अमर ने सहजता से कहा। उसके लहजे में न औपचारिकता थी, न बनावट, बस एक सीधी, साफ़ सच्चाई। अमर के आने के बाद ऑफिस की हवा बदल गई थी। वो हर काम को पूरे दिल से करता, और दूसरों की मदद भी कर...

तन्हाई

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एपिसोड 1 –  तन्हाई  अकेलेपन की गूंज और अधूरी चाहतों की शुरुआत शहर के सबसे शांत और प्रतिष्ठित इलाके में, सफ़ेद दीवारों वाला एक बंगला हर सुबह की तरह आज भी बेहद सलीके से सजा था। सामने की लॉन में माली रोज़ की तरह फव्वारे चालू कर चुका था, फूलों की क्यारियाँ हल्की धूप में मुस्कुरा रही थीं, लेकिन उस घर की खिड़कियों से आती हवा में एक ठहराव था… जैसे वहाँ कोई आवाज़ बहुत दिनों से गुम हो चुकी हो। यह बंगला संध्या राठौर का हैं उम्र लगभग पैंतालीस। चेहरा अब भी उतना ही निखरा हुआ, जितना कभी शादी के शुरुआती दिनों में था, बस आँखों के नीचे हल्की लकीरों में वक्त की परछाइयाँ उतर आई थीं। संध्या के पति, राजीव राठौर, एक ईमानदार और काबिल सरकारी अधिकारी थे। तीन साल पहले एक सड़क दुर्घटना में चले गए। उनके जाने के बाद विभाग ने संध्या को “सहानुभूति नियुक्ति”पर वही पद दे दिया था, और उस दिन से वो घर और ऑफिस दोनों संभाल रही थी। लेकिन कहीं भीतर से अब भी टूटी हुई थीं। *सुबह का अकेलापन* रोज़ की तरह आज भी सुबह के आठ बजे ड्राइवर ने कार बाहर खड़ी कर दी थी। नौकरानी रीना ने चाय टेबल पर रखी और बोली, "मैडम, न...

भक्ति का सौदा

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**भक्ति और आस्था: सत्कर्म का मार्ग, अंधविश्वास नहीं** आज के युग में जब समाज तीव्र गति से भौतिक प्रगति कर रहा है, तब भी आस्था और भक्ति का प्रभाव मानवीय जीवन में गहराई से विद्यमान है। मंदिरों में भीड़, तीर्थों की यात्राएँ, हवन-पंढालों के आयोजन और धार्मिक गुरुओं की कथाओं में लाखों का जमावड़ा—यह सब हमारे भीतर के विश्वास के प्रतीक हैं। लेकिन इसी आस्था का एक दूसरा चेहरा भी है, जो हमें सोचने पर मजबूर कर देता है—क्या भक्ति केवल धन और ऐश्वर्य प्राप्त करने का माध्यम बन गई है? क्या लोगों की यह धारणा कि “भक्ति से करोड़पति बना जा सकता है” किसी अन्धविश्वास की मानसिकता नहीं है? #### **भक्ति: एक आत्मिक अनुशासन** भक्ति का वास्तविक स्वरूप आत्मिक अनुशासन में निहित है। यह मनुष्य को लोभ, क्रोध, ईर्ष्या जैसे नकारात्मक गुणों से दूर ले जाकर उसे आत्मशुद्धि की ओर प्रेरित करती है। संत तुलसीदास ने कहा था—“भक्ति करै सु सुख उपजै, मिटै पाप दुख भारी”—अर्थात् भक्ति का उद्देश्य मन के विकारों को दूर कर जीवन में शांति लाना है, न कि धन-संपत्ति की कामना करना।   भक्ति का अर्थ भगवान से लेन-देन नहीं, बल्कि...

स्याही के शब्द-2

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11-✍️ तलाश में उलझन रिश्तों की गहराई भूलकर, बंधन की मर्यादा तोड़कर, वो स्क्रीन पर सज रही है— मानो ज़िंदगी का सच अब कैमरे की झिलमिलाहट में ही छिपा हो। सोशल मीडिया के मंच पर फ़ूहड़ता का तमाशा बिक रहा है, जहाँ सादगी मज़ाक बन चुकी है, और उघाड़ापन ही "आधुनिकता" कहलाता है। कभी बहन, कभी बेटी, कभी माँ— इन रूपों की गरिमा कहाँ खो गई? किस तलाश में है वो? क्या कुछ पल की तालियों में उसकी आत्मा की प्यास बुझ जाएगी? शायद पहचान की भूख है, शायद अकेलेपन की चुभन है, या शायद दुनिया के शोर में अपने ही मौन को दबाने का प्रयास। पर क्या सचमुच यही तलाश है— कि रिश्तों की मर्यादाएँ गिरवी रखकर वह वर्चुअल तालियों का सौदा कर ले? या फिर यह भटकन है, जहाँ औरत अपनी असल ताक़त दिखावे की धूल में खो रही है। मर्यादा बोझ नहीं, बल्कि आत्मसम्मान की ढाल है। और जो उसे उतार फेंकती है, वह तलाश नहीं करती— बल्कि तलाश में खो रही है औरत। आर्यमौलिक ===🌸=== 12-✍️ इज्जत इज़्ज़त वो आईना है, जिसमें इंसान का असली चेहरा झलकता है, दरार पड़ जाए तो उम्रभर चमकता भी है, पर पहले जैसा नहीं लगता है। ये वो सुगंध है, जो बिन दिखे ह...